क्या आपको पता है बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजता , जानिए क्या है इसका रहस्य
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30/01/20229:44 am
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक में भगवान साणेश्वर का एक भव्य मंदिर समूह है। कहा जाता है कि ये ही वो मंदिर है, जिसकी शक्तियों की वजह से बदरीनाथ में शंख नहीं बजता। आपने शायद इस बात पर कभी गौर ना की हो, लेकिन बदरीनाथ में कभी भी शंख नहीं बजता। अब सवाल ये है कि आखिर अतीत में ऐसा क्या हुआ था कि बदरीनाथ में शंख बजना बंद हो गया ? जन श्रुतियो और लोक कथाओं पर अगर आप नज़र डालेंगे तो दो जगहों की बात होती है। पहला है कुमड़ी गांव का कूष्मांडा मंदिर और दूसरा है सिल्ला गांव स्थित शाणेश्वर मंदिर।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां आतापी और वातापी नाम के दैत्यों ने तहलका मचा रखा था। कहा जाता है कि ये दैत्य नरभक्षी हुआ करते थे। जो भी पुजारी मन्दिर में पूजा करने जाता, ये दैत्य उसको अपना निवाला बना देते थे। जब शाणेश्वर मंदिर में आखिरी पुजारी बचा तो उसी दौरान भ्रमण करते हुऐ महर्षि अगस्त्य इस स्थान पर आए थे। महर्षि अगस्त्य को जब इस बारे में पता चला तो वो खुद हैरान रह गए। उन्होंने प्रण लिया कि वो आतापी और वातापी दैत्यों का नाश करेंगे। इसके लिए महर्षि अगस्त्य खुद मंदिर के पुजारी बनकर पूजा करने लगे। जब महर्षि अगस्त्य पूजा करने के बाद भोग ग्रहण करते हैं तो भोग में छुपा आतापी महर्षि के पेट में पहुंच कर उत्पात मचाने लगता है। मायावी शक्ति जान महर्षि उसे पेट में ही भस्म कर देते हैं। इधर वातापी अपने भाई को पुकारता है लेकिन जवाब न मिलने पर क्रुद्ध होकर मुनि जी पर र हमला करता है। इस युद्ध में कई मायावी दैत्य प्रकट होते है। नौ दिन नौ रात तक महर्षि अपनी शक्तियों से दैत्यों के साथ लड़ते रहे लेकिन एक मरता तो सौ उत्पन्न हो जाते। तब वो पराशक्ति का ध्यान कर अपनी कोख को मल कर उग्र शक्ति कूष्मांडा देवी को उत्पन्न करते हैं। देवी की सहायता के लिए मुनि अगस्त्य आठ अन्य शक्तियों को भी प्रकट करते हैं। कहा जाता है कि मां कूष्मांडा उन समस्त मायावी दैत्यों का संसार कर देती है। लेकिन अंत में दो दैत्य भागने में सफल हो जाते है। इनमें से एक दैत्य बद्रीनाथ धाम में छिप गया। उस वक्त से लेकर अाज तक बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजता। मान्यता है कि शंख बजाने से ही वो मायावी दैत्य फिर जागेगा। दूसरा दैत्य वातापी सिल्ली की नदी में छिप गया। देवासुर संग्राम के बाद महर्षि अगस्त्य के आशीर्वाद से भगवान साणेश्वर और भगवती कूष्मांडा सिल्ला गांव में विशाल महायज्ञ का आयोजन करते हैं। आज भी प्रत्येक बारह वर्ष बाद सिल्ला में विशाल महायज्ञ का आयोजन होता है।
सिल्ला मंदिर समूह जाने के लिए रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से अगस्त्यमुनि पाठालीधार सड़क पर ढुंगरा बैंड पर उतरना पड़ता है। जहां से 100 मीटर की पैदल दूरी पर भव्य मंदिर समूह स्थित है। वहीं कुष्मांडा मंदिर के लिए तिलवाड़ा से सूरज प्रयाग होते हुऐ कुमड़ी गांव तक सड़क जाती हैं।
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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक में भगवान साणेश्वर का एक भव्य मंदिर समूह है। कहा जाता है कि ये ही वो मंदिर है, जिसकी शक्तियों की वजह
से बदरीनाथ में शंख नहीं बजता। आपने शायद इस बात पर कभी गौर ना की हो, लेकिन बदरीनाथ में कभी भी शंख नहीं बजता। अब सवाल ये है कि आखिर अतीत में ऐसा क्या हुआ था कि
बदरीनाथ में शंख बजना बंद हो गया ? जन श्रुतियो और लोक कथाओं पर अगर आप नज़र डालेंगे तो दो जगहों की बात होती है। पहला है कुमड़ी गांव का कूष्मांडा मंदिर और
दूसरा है सिल्ला गांव स्थित शाणेश्वर मंदिर।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहां आतापी और वातापी नाम के दैत्यों ने तहलका मचा रखा था। कहा जाता है कि ये दैत्य नरभक्षी हुआ करते थे। जो भी पुजारी मन्दिर
में पूजा करने जाता, ये दैत्य उसको अपना निवाला बना देते थे। जब शाणेश्वर मंदिर में आखिरी पुजारी बचा तो उसी दौरान भ्रमण करते हुऐ महर्षि अगस्त्य इस स्थान पर
आए थे। महर्षि अगस्त्य को जब इस बारे में पता चला तो वो खुद हैरान रह गए। उन्होंने प्रण लिया कि वो आतापी और वातापी दैत्यों का नाश करेंगे। इसके लिए महर्षि
अगस्त्य खुद मंदिर के पुजारी बनकर पूजा करने लगे। जब महर्षि अगस्त्य पूजा करने के बाद भोग ग्रहण करते हैं तो भोग में छुपा आतापी महर्षि के पेट में पहुंच कर
उत्पात मचाने लगता है। मायावी शक्ति जान महर्षि उसे पेट में ही भस्म कर देते हैं। इधर वातापी अपने भाई को पुकारता है लेकिन जवाब न मिलने पर क्रुद्ध होकर मुनि
जी पर र हमला करता है। इस युद्ध में कई मायावी दैत्य प्रकट होते है। नौ दिन नौ रात तक महर्षि अपनी शक्तियों से दैत्यों के साथ लड़ते रहे लेकिन एक मरता तो सौ
उत्पन्न हो जाते। तब वो पराशक्ति का ध्यान कर अपनी कोख को मल कर उग्र शक्ति कूष्मांडा देवी को उत्पन्न करते हैं। देवी की सहायता के लिए मुनि अगस्त्य आठ अन्य
शक्तियों को भी प्रकट करते हैं। कहा जाता है कि मां कूष्मांडा उन समस्त मायावी दैत्यों का संसार कर देती है। लेकिन अंत में दो दैत्य भागने में सफल हो जाते है।
इनमें से एक दैत्य बद्रीनाथ धाम में छिप गया। उस वक्त से लेकर अाज तक बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजता। मान्यता है कि शंख बजाने से ही वो मायावी दैत्य फिर
जागेगा। दूसरा दैत्य वातापी सिल्ली की नदी में छिप गया। देवासुर संग्राम के बाद महर्षि अगस्त्य के आशीर्वाद से भगवान साणेश्वर और भगवती कूष्मांडा सिल्ला
गांव में विशाल महायज्ञ का आयोजन करते हैं। आज भी प्रत्येक बारह वर्ष बाद सिल्ला में विशाल महायज्ञ का आयोजन होता है।
सिल्ला मंदिर समूह जाने के लिए रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से अगस्त्यमुनि पाठालीधार सड़क पर ढुंगरा बैंड पर उतरना पड़ता है। जहां से 100 मीटर की पैदल दूरी पर
भव्य मंदिर समूह स्थित है। वहीं कुष्मांडा मंदिर के लिए तिलवाड़ा से सूरज प्रयाग होते हुऐ कुमड़ी गांव तक सड़क जाती हैं।