दीपक बेंजवाल / दस्तक ठेठ पहाड़ से / ज़िन्दगी लाईव-1
रूद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाक के एक गांव झटगढ़ सिल्ला निवासी गोविन्द सिंह राणा। गांव के बियावान रास्तों में राहागीरों के लिए जगह-जगह पेड़-पौधे रोपकर वो ममतामयी ‘छांव’ के चहेते नायक बन गए। साधु सा जीवन, एकांकीपन और गरीबी यही उनके संगी साथी और जीवन है।
40 साल से वटवृक्ष को अपने पुत्रवत स्नेह और मेहनत से सींचते आ रहे गोविन्द सिंह राणा की कहानी उस वटवृक्ष की तरह ही अडिग है, जिसकी छांव में आज कई बाटा बटोई (राहागीर) अपनी थकान मिटाते रहते है। चिपको की इस धरती में पर्यावरण संरक्षण और पेड़-पौधों से प्यार करने वाले कई बिरली सख्शियत पैदा हुई है। भले ही चिपको नायकों की तरह आज का अधिसंख्य समाज उन्हें न जानता हो लेकिन उनके महान कार्यो की बदौलत ही हम चिपको जैसे बड़े अभियान देश-दुनिया को दे पाए है। ऐसी ही एक गुमनान कहानी के किरदार है रूद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लाक के एक गांव झटगढ़ सिल्ला निवासी गोविन्द सिंह राणा। गांव के बियावान रास्तों में राहागीरों के लिए जगह-जगह पेड़-पौधे रोपकर वो ममतामयी ‘छांव’ के चहेते नायक बन गए। साधु सा जीवन, एकांकीपन और गरीबी यही उनके संगी साथी और जीवन है। कई बार जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बाद भी इन्हें आज तक प्रधानमंत्री आवास नहीं मिल पाया और न ही कहीं से कोई आर्थिक मदद। जीवन तो जीना था इसलिए खुद एक झोपड़ी बनाकर उसमें रहने लगे। जीवन यापन के लिए मेहनत मजदूरी और खेती-बाड़ी की, जितना मिला संतोष किया और जो थोड़ा बहुत बचा उसे अपने सेवा संकल्प अभियान के लिए खर्च भी कर दिया।
मुफलिसी में जिन्दगी गुजारते हुए भी उन्होंने कई वृक्षों को रोपा-पाला और सींचकर छांव का आधार बनाया और अब जीवन के ढलते पढ़ावों पर पिछले चालीस सालों से पुत्रवत स्नेह के साथ पाल-पोस रहे अपने खास वट वृक्ष के चारों ओर मेहनत मजदूरी से इकठ्ठी की गई अपनी खून पसीने की सारी कमाई खर्च कर सुदंर चबूतरा बनाकर ‘छांव’ का बड़ी सौगात समाज को सौप गए। वो कहते है जीवन तो क्षणिक है लेकिन मानव धर्म हमेशा अमर है और सच्चे शब्दों में कहे तो जनसेवा ही नारायण सेवा है।
दस्तक के सुधी पाठक देवेन्द्र सिंह रावत ने उनके इस वीडियों और कहानी से जब हमें साझा किया तो दिल से उनकी दरियादिली से नमन करते हुए झुक गया। उनके शब्दों में कहे तो मानव धन से नहीं मन से अमीर होना चाहिए, गोविन्द सिंह राणा जो खुद एक झोपड़ी में रहते हैं लेकिन अपने आशियाने की मरम्मत न कर राहागीरों के लिए अपने वटवृक्ष के चारों ओर बैठने के लिए चबूतरे की व्यवस्था कर समाज सेवा की मिसाल पेश की है। लेकिन विडंबना देखिए जिस समाज के लिए ये सेवा का कार्य कर रहे है उसी समाज ने इन्हें कई बार दुत्कारा भी। उनके किए गए कार्यो को अपना बताकर कोई सरकारी निधि हड़प गया तो कोई श्रेय। लेकिन अपने समाज की निष्ठुरता देखकर भी इस सरल हृदयी मन की इंसानियत खत्म नहीं हुई और रास्तों और राहागीरों के लिए जगह-जगह पेड़-पौधों को लगाने का सेवा संकल्प अभियान जारी रहा, ताकि उनकी छांव समाज के उन पत्थर हृदयों में निष्ठुरता की जगह शीतलता भरे।
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में जहां समाज सेवा को वोट का नया हथियार बनाकर भुनाया जा रहा था ऐसे में इस साधु हृदयी व्यक्ति का त्याग और समर्पण देख पीड़ा भी हुई, कि हम कैसे समाज में रह रहे है जहाँ सेवा को भी मोलभाव से तौला जाता है, भुनाया जाता है।
समाज सेवी गोविन्द सिंह राणा की इन्सानियत के लिए बहुत से शब्द लिखे जा सकते है लेकिन इन शब्दों से कही ज्यादा बड़ा उनका व्यक्तित्व है। अगर इस साधु पुरूष के लिए कोई किसी भी प्रकार की मदद करना चाहे तो दस्तक परिवार से संपर्क कर सकते है।
दीपक बेंजवाल / दस्तक ठेठ पहाड़ से / ज़िन्दगी लाईव-1