Pahad espesl : हरदा का नया ऐलान “धूलिअर्घ्य सम्मान पेंशन”, जानिए कौन होगा हकदार

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उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत राजनीतिक रूप से सुर्खियों में बने ही रहते हैं। इस बार राजनीतिक बयानों से हटकर उनका बयान पहाड़ की एक बेहद शालीन, सुंदर परंपरा “धूली अर्घ्य” को लेकर आया है। पूर्व सीएम हरीश रावत कहते हैं कि “शादी-विवाह में धूलि अर्घ्य परम्परा, महान परम्परा है और उत्तराखंड में धूलि अर्घ्य का ब्राह्मणों के मंत्रो उच्चार का वातावरण केस को गरिमा प्रदान करने और एक आध्यात्मिक स्वरूप देने में विवाह कर्म के शुरुआती चरण में बहुत अधिक महत्व है। यह परंपरा टूटे नहीं, इसके लिए आवश्यक है कि हमारे धूलिअर्घ्य सम्मान पेंशन प्रारंभ होनी चाहिए। हमने पुरोहितों के लिए जो पेंशन प्रारंभ की है उसमें मैं चाहूंगा कि ₹500 की और वृद्धि होनी चाहिए ताकि यह परंपरा आगे भी सास्वत बनी रहे।”

वीडियो में देखिए क्या बोले हरदा —-

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क्या हैं धूली अर्घ्य –

घर के द्वार पर बारात के स्वागतार्थ 3/5 कन्याएं सर पर, शगुन सूचक, पुष्प व आम्र पत्र युक्त जल कलश लेकर समस्त परिजनों व दुल्हन पक्ष के पंडित जी के साथ खडी रहती हैं। वर पक्ष के लोग जल कलशों में कुछ सिक्के डालते हैं और कन्याओं को भेंट में कुछ धन राशि देते हैं। कन्या पक्ष के पंडित जी वर पक्ष के पंडित व वर का पाद्य, अर्घ्य व् आचमन से पूजन करते हैं और बारातियों के ऊपर जल कलशों का जल सिंचन करते हैं तथा माल्यार्पण भी करते हैं। इस रस्म को धूलि अर्घ्यकहते हैं।दरअसल, परंपरागत रूप से बारात संध्याकाल में, गोधूली के समय, कन्या गृह पर पहुंचती थी। अतः देवी संध्या (गढ़वाल में संध्या की देवी रूप में पूजा की जाती है) व गोधूलि को भी अर्घ्य दिये जाने की परंपरा है। यह एक प्रकार से बारातियों का शुद्धिकरण भी है, क्योंकि बरात दूर गाँव से आती है अतः रास्ते की धूल, ऊपरी हवा आदि भी उनके साथ आती है, इसलिए मंत्रोच्चार के साथ उनके ऊपर जल से मार्जन/प्रोक्षण करना हि धूलिअर्घ्य का उद्देश्य माना जा सकता है। इधर मंगलेनी स्त्रियाँ माँगल गायन करती हैं।

जणदो नि छौ मि पछणदो नि छौ मि,

कै देण धूळी अरघ, कै देण धूळी अरघ…

जैको होलो जैको होलो मखमली जामो,

कानू कुंडल, साल-दुसालो,

जैकी होली जैकी होली सीरा पगड़ी,

हाथु कंगण, पाँव खड़ाऊँ,

वीई होलो धिया को धुमैलो, वेई देण धूळी अरघ,

वेई देण शंख की पूजा………..

लड़की के पिता पूछते हैं की धूलि अर्घ्य किसे देना है। (गढ़वाल में आज से पहले वर, दुल्हन के परिजनों से नहीं मिला होता है, यह इसी तथ्य का संकेत है। हालांकि अब स्थिति बदल चुकी है और शहरी/अर्ध शहरी क्षेत्रों में तो सगाई की रस्म में अब वर भी कन्या के घर जाता है) माँगल गायिकाएं उत्तर देती हैं की जिस ने मखमली जामा पहना होगा, जिसके सर पर सेहरा व पगड़ी होगी, जिसके पैर में खडाऊं होंगे, कानों में कुंडल होंगे ………………वही हमारी कन्या का स्वामी होगा, उसी को धूलि अर्घ्य और शंख की पूजा देनी है। इसके बाद बारात विवाह मंच पर प्रवेश करती है। वर को एक ऊंचे आसन पर काष्ठ चौकी पर खड़ा करके वर-नारायण का पूजन किया जाता है। स्रोत परंपरा साभार : ज्योतिष घिल्डियाल

 

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