मरीजों की ‘संजीवनी’ बना होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गीता का इलाज, जानिए क्यों है वो इतनी लोकप्रिय
1 min read17/06/2022 4:30 pm
हरीश गुसाईं / अगस्त्यमुनि।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में अधिकाश लोग एलोपैथिक उपचार पर अधिक भरोसा करते है। परन्तु भारतीय चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद का अपना अलग ही संसार है, जो न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी काफी लोकप्रिय है। वहीं यूनानी चिकित्सा पद्धति जो है तो विदेशी परन्तु भारत में भी काफी लोकप्रिय है। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरी क्षेत्रों में होम्योपैथी के क्लीनिक भी बहुतायत में दिख जायेंगे। उत्तराखण्ड सरकार ने भीह यूनानी चिकित्सा पद्धति को मान्यता देते हुए प्रत्येक जिले में होम्योपैथिक का अलग से विभाग खोला है तथा प्रत्येक सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में होम्योपैथिक चिकित्सकों की नियुक्तियां भी की गई हैं। इसके बाबजूद इस पर कम ही लोग भरोसा जता पा रहे हैं। परन्तु धीरे धीरे होम्योपैथिक चिकित्सकों की कार्यकुशलता एवं मेहनत से इस चिकित्सा पद्धति पर लोगों का विश्वास बढ़ने लगा है। इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अगस्त्यमुनि में तैनात होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गीता ने अपने चिकित्सकीय ज्ञान से कई मरीजों को स्वस्थ कर अपनी अलग पहचान बनाई है।
वैसे तो आमतौर से दमा, कान के संक्रमण, फीवर, अवसाद, तनाव और चिंता, एलर्जी, वात रोग आदि के रोगी ही होम्योपैथी का इलाज कराने आते है। परन्तु सीएचसी अगस्त्यमुनि की होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गीता ने इसका प्रयोग अन्य रोगों पर भी आजमाया है। उन्होंने ऐसे कई महिलाओं का इलाज किया है जिन्हें शादी के कई वर्षों बाद भी मां बनने का सुख नहीं मिल पाया। आज उनके इलाज से वे मां बन पाई हैं। उनके पास ऐसे कई मरीजों की लम्बी फेहरिस्त है जो कमर दर्द से लेकर अन्य कई जटिल बीमारियों से पीड़ित थे। और आज उनके इलाज से वे रोगमुक्त हो गये हैं। अभी हाल ही में उन्होंने एक ब्रेन स्ट्रोक्स के ऐसे मरीज को ठीक किया है जो पीजीआई चण्डीगढ़ से निराश होकर घर लौटा था। मामला ऊखीमठ तहसील के पल्द्वाड़ी गांव के निवासी शिक्षक श्रीप्रताप सिंह रावत का है। जिन्हें 30 अप्रैल 2022 को घर पर ब्रेन स्ट्रोक हुआ। जिसके कारण उन्हें पैरालाइज हो गया। परिजन उन्हें अगस्त्यमुनि उन्हें श्रीनगर बेस अस्पताल लाये जहां से उन्हें हायर सेण्टर के लिए रैफर किया गया। उसके बाद परिजन उन्हें पीजीआई चण्डीगढ़ ले गये। जहां उनका पांच दिनों तक इलाज चला। थोड़ा राहत तो मिली परन्तु न तो वो बोल पाये और नहीं चल पाये। 11मई को परिजन उन्हें घर ले आये और घर पर ही इलाज चलता रहा। परन्तु खास फायदा नहीं हुआ। 19 मई को परिजन उन्हें सीएचसी अगस्त्यमुनि लाये। जहां उनकी मुलाकात होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गीता से हुई। डॉ गीता ने उन्हें एक अवसर देने को कहा। परिजनों के तैयार होने पर उन्होंने ईलाज प्रारम्भ किया। और उन्हें दवाइयां देकर घर भेज दिया। उन्हें समय पर दवाई लेने के साथ ही कुछ व्यायाम भी बताये। तथा इसमें किसी भी तरह से ढ़िलाई न करने के निर्देश दिए। इसके सुखद परिणाम मिले तथा दस दिनों के संयमित जीवन एवं दवाइयों के असर से वे न केवल बोलने लगे बल्कि बिना किसी सहारे के चलने भी लगे। 15 वें दिन वे स्वयं चलकर डॉ से मिले तथा अपने स्वास्थ्य की जानकारी स्वयं ही देने लगे। परिजनों के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। उन्होंने इसके लिए डॉ गीता का आभार जताया और कहा कि चिकित्सा की कोई भी पद्धति गलत नहीं है। आवश्यकता है उस पर विश्वास करने की। उन्हें तो लगता है कि अगर डॉ द्वारा दिए गये निर्देशों का पालन ठीक से हो तथा समय पर दवाईयांे का सेवन किया जाय तो होम्योपैथिक ईलाज भी कारगर है। वहीं डॉ गीता ने बताया कि यह मेरे लिए भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। उन्होंने कुछ दवाइयों को बन्द कर होम्योपैथिक दवाइयां प्रारम्भ की। अवसाद, तनाव और चिन्ता के लिए होम्योपैथ में अच्छी दवाइयां हैं। मैंने इसी पर ध्यान केन्द्रित कर इलाज किया। और अपेक्षित परिणाम मिले। मुझे पूर्ण विश्वास था कि मरीज स्वस्थ हो जायेगा। परन्तु इतने जल्दी होगा यह नहीं सोचा था। मरीज द्वारा इलाज के लिए दिए गये पूर्ण सहयोग से ही यह सम्भव हो पाया। बताया कि संयमित जीवन जीने तथा अपने खान पान में सुधार से अधिकांश रोगो को अपने से दूर किया जा सकता है। ब्रेन स्ट्रोक में शुरूवाती उपचार महत्वपूर्ण होता है। ऐसी स्थिति में मरीज को शीघ्रातिशीघ्र नजदीकी अस्पताल तक पहुंचायें। उच्च रक्तचाप वाले मरीजों को खास ध्यान रखना होगा। सावधानी में ही बचाव है।
फोटो – ब्रेन स्ट्रोक के मरीज के साथ डॉ गीता।
अपनी कहानी बयां करता मरीज
ब्रेन स्ट्रोक से बचाव की जानकारी देती डॉ गीता।
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