शहीद स्मारकों पर भी हावी हुई राजनीति, डेढ़ साल तक नेताओं की राह देखती रही मूर्ति, आज बेटी ने किया अनावरण
1 min read15/08/2023 10:26 pm
अनसूया प्रसाद मलासी / अगस्त्यमुनि
बौडरु बटि जु बौडि नि ऐनीं, देश कि रक्षा मा उखि खपि गैनीं। ऊँ सिपायूं तैं सल्यूट सलाम, ऊँ शहीदूं तैं सौ बार प्रणाम।।
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देश की रक्षा पर मर मिटने वाले सैनिकों का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। इन्हीं में एक हैं रुद्रप्रयाग जनपद में ऊखीमठ तहसील के गिंवाला (अगस्त्यमुनि) गाँव के सते सिंह रावत, जो मात्र 30 वर्ष की युवावस्था में कुपवाडा़ (जम्मू-कश्मीर) में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए 25 अगस्त 1995 को शहीद हो गए थे।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गिंवाला में हुए कार्यक्रम में शहीद सते सिंह रावत की पुत्री श्रीमती लीला नेगी ने अपने पिता की मूर्ति का अनावरण कर माल्यार्पण किया। वह सरकार और जनप्रतिनिधियों द्वारा शहीदों की मूर्तियों को यूँ ही लावारिस छोड़ दिये जाने से क्षुब्ध थी। इस अवसर पर स्कूल के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये और शहीदों को श्रद्धांजलि का कार्यक्रम भी हुआ। इसमें शहीद के परिजन भी पहुंचे और नाते-रिश्तेदार व गांव के लोग भी। स्कूल के प्रधानाध्यापक नंदलाल आर्य, श्री गिरीश बेंजवाल व श्री योगेंद्र नेगी के अलावा गिंवाला गांव के बुजुर्ग कुंवर सिंह बर्तवाल, शहीद के परिजन यशपाल सिंह रावत, शिशुपाल सिंह रावत, पूर्व सैनिक गीताराम मलासी, शहीद के दामाद सुखदेव सिंह नेगी, अनसूया प्रसाद मलासी, गांव की महिलाएं, स्कूल के बच्चे भी शामिल रहे।
सते सिंह रावत का जन्म 3 दिसंबर 1965 को गिंवाला गाँव में हुआ था। वे सेना में भर्ती हुए और युवावस्था में ही दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। जब उनकी मृत्यु हुई, उनके परिवार में पत्नी दीपा देवी, सबसे बड़ी बेटी 9 साल, दूसरी 7, 5 और 3 की थी। एक बच्चा पेट में था, उनकी मृत्यु के 2 महीने बाद उनके घर में चार बेटियों के बाद एक बेटे ने जन्म लिया, जो आज 28 वर्ष का नौजवान बन गया है।
शहीदों की शहादत का अपमान
शहीद सत्ते सिंह रावत की मूर्ति राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गिंवाला के प्रांगण में लगाई गई, मगर डेढ़ साल गुजर जाने के बाद भी मूर्ति का अनावरण नहीं हो सका था। कांग्रेस के निवर्तमान विधायक मनोज रावत ने अपनी विधानसभा में सभी शहीद सैनिकों की मूर्तियां उनके गृह क्षेत्र में लगाने का निर्णय लिया था और यह मूर्तियां बनवाई। मगर तब तक चुनाव आचार संहिता लगी, यह मूर्तियां बनती रही और गांव में भेजी गई, मगर इनमें से अधिकांश मूर्तियों का अनावरण नहीं हो पाया था।
बीते साल विधानसभा चुनाव में मनोज रावत चुनाव हार गए और शैला रानी रावत यहां की विधायक बनी। मगर उन्होंने इस बारे में कोई रुचि नहीं ली। जबकि दोनों पहले कांग्रेस पार्टी के थे, मगर बाद में शैला रानी जी कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आ गई थी। इसलिए वे अब कांग्रेस को महत्व नहीं देना चाहती थी, तो शहीदों की मूर्तियों का अनावरण कार्यक्रम भी रुक गया।
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