दस्तक पहाड़ न्यूज। हिमालय की आराध्या मां नन्दा देवी जो प्रकृति , धार्मिक आस्था , विस्वास , हिमालयी परम्परा , विरासत के साथ साथ यहां के लोगों की आत्मा और परिवार के सदस्य की तरह ( मां. बहिन , बेटी के रूप में ) ध्याण के रूप में भी जुड़ी हैं। ऐसी मां नन्दा देवी की यों तो हर 12 वर्ष में विराट यात्रा नन्दा देवी राजजात होती है । जिसे दुनिया की सबसे लम्बी धर्म यात्रा भी कहते हैं। पर इसी हिमालय में मां नन्दा देवी की हर वर्ष नन्दा देवी लोक जात ( यात्रा ) का भी आयोजन होता है । कल शनिवार को मां नन्दा देवी की दोनों देव डोलियां मां के सिद्ध पीठ कुरुड मंदिर से पूजा अर्चना मंत्रोच्चार से अभिमंत्रित होकर श्रद्धालुओं के कंधों पर सवार होकर ऊंचे हिमालय के लिए चल पड़ी है।
मां नन्दा देवी की डोलियो को हजारों की संख्या में जुटे श्रद्धालुओं ने आत्मीयता के जागरों को गा कर विदा लिया । मां की डोलियों को अपनी आराध्या अपनी ध्याण मान कर विदा किया । आंखों में आंसू भी थे। तो स्नेह भी आत्मीयता भी । जैसे घर में मां पिता अपने बेटी , भाई अपनी बहिन को मायके से ससुराल भेजते समय भेंट देते हैं ना ! उसी तरह मां नन्दा देवी को चूड़ी , बिंदी , सांकुरी , चुनरी , साड़ी , कांखडी , मुंगेरी लाकर हिमालय के लिए विदा किया । मां नन्दा देवी की डोली भी अपने भक्तों की कंधों पर सवार होकर ठुमक ठुमक पर चली ।
हिमालय के अगले पड़ाव की यात्रा पर प्रकृति ने विदा किया । बारिश के बाबजूद भी हजारों की संख्या में महिलाओं ने अपनी आत्मा से जुड़ी मां नन्दा को विदा किया ।
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ऊंचे कैलाश के लिए चलीं माँ नन्दा देवी, सिद्धपीठ कुरूड़ से दशोली और बधाण की मां नंदा की लोकजात का शुभारंभ
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क्रान्ति भट्ट / गोपेश्वर
दस्तक पहाड़ न्यूज। हिमालय की आराध्या मां नन्दा देवी जो प्रकृति , धार्मिक आस्था , विस्वास , हिमालयी परम्परा , विरासत के साथ साथ यहां के लोगों की आत्मा और
परिवार के सदस्य की तरह ( मां. बहिन , बेटी के रूप में ) ध्याण के रूप में भी जुड़ी हैं। ऐसी मां नन्दा देवी की यों तो हर 12 वर्ष में विराट यात्रा नन्दा देवी राजजात
होती है । जिसे दुनिया की सबसे लम्बी धर्म यात्रा भी कहते हैं। पर इसी हिमालय में मां नन्दा देवी की हर वर्ष नन्दा देवी लोक जात ( यात्रा ) का भी आयोजन होता है ।
कल शनिवार को मां नन्दा देवी की दोनों देव डोलियां मां के सिद्ध पीठ कुरुड मंदिर से पूजा अर्चना मंत्रोच्चार से अभिमंत्रित होकर श्रद्धालुओं के कंधों पर
सवार होकर ऊंचे हिमालय के लिए चल पड़ी है।
मां नन्दा देवी की डोलियो को हजारों की संख्या में जुटे श्रद्धालुओं ने आत्मीयता के जागरों को गा कर विदा लिया । मां की डोलियों को अपनी आराध्या अपनी ध्याण
मान कर विदा किया । आंखों में आंसू भी थे। तो स्नेह भी आत्मीयता भी । जैसे घर में मां पिता अपने बेटी , भाई अपनी बहिन को मायके से ससुराल भेजते समय भेंट देते हैं
ना ! उसी तरह मां नन्दा देवी को चूड़ी , बिंदी , सांकुरी , चुनरी , साड़ी , कांखडी , मुंगेरी लाकर हिमालय के लिए विदा किया । मां नन्दा देवी की डोली भी अपने भक्तों की
कंधों पर सवार होकर ठुमक ठुमक पर चली ।
हिमालय के अगले पड़ाव की यात्रा पर प्रकृति ने विदा किया । बारिश के बाबजूद भी हजारों की संख्या में महिलाओं ने अपनी आत्मा से जुड़ी मां नन्दा को विदा किया ।