चोपता में बुग्यालों के संरक्षण के लिए कोयर नेट तकनीक बनी संजीवनी, रंग लाई वन विभाग की पहल
1 min read
11/09/20239:24 am
भगवती शैव / ऊखीमठ
दस्तक पहाड न्यूज। हिमालय की गोद में स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्यटक स्थल चोपता में बुग्यालों के संरक्षण के लिए कोयर नेट तकनीक संजीवनी साबित हो रही है। नारियल के रेशों से तैयार कोयर नेट लगाने से कई स्थानों पर बुग्याल दोबारा उग आई है। वन विभाग द्वारा बुग्यालों को बचाने के दिशा में किया गया यह कार्य सफल होता दिखाई दे रहा है। दरअसल भूस्खलन,कमजोर भौगोलिक गठन,अधिक बरसात,भूमि संरचना,मानव हस्तक्षेप एवं बादलों के फटने जैसी प्राकृतिक घटनाएं बुग्याली क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण होती हैं और बुग्यालों को खासा नुकसान पहुँचता है। इसलिए इसके संरक्षण के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष दिसम्बर में विश्वप्रसिद्ध चोपता,देवरियाताल,रौणी बुग्याल एवं भुजगलि में वन विभाग के द्वारा लगभग 22 सौ वर्ग मीटर के क्षेत्र में नारियल के रेशों से निर्मित चटाइयां (कोयर नेट) लगायी गयी थी। यह नेट उन स्थानों पर लगायी गयी थी जहां पर लगातार भूकटाव हो रहा था और बुग्याल पूरी तरह समाप्त हो गयी थी। लगभग आठ माह बीतने के बाद इन स्थानों पर बुग्याल दोबारा उगने लग गयी है। कोयर नेट विधि से बुग्यालों को पूरी तरह उगने में तीन से पांच साल का वक्त लगता है वहीं बुग्यालों के संरक्षण की दिशा में यह प्रयास कारगर साबित हो रहा है। इस तकनीक का भारत में पहली बार उपयोग 2020 में दयारा बुग्याल में किया गया था।
केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के वन क्षेत्राधिकारी पंकज ध्यानी ने बताया कि चोपता व अन्य स्थानों पर बुग्यालों को बचाने के लिए कोयर नेट (जाल) लगायी गयी है। जिसके सकारात्मक परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। इसी प्रकार मध्यमहेश्वर एवं तुंगनाथ व चंद्रशिला के बीच भी बुग्यालों के सरंक्षण का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा। कहा कि बुग्यालों के संरक्षण के लिए सभी लोगों की सहभागिता अति आवश्यक है।
क्या है कोयर नेट तकनीक
कोयर नेट
मखमली घास के ढलानों पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें नारियल रेशों से तैयार जाल( चटाई) से प्रभावित स्थान को पूरी तरह ढक दिया जाता है यह खाद का काम तो करती ही है साथ में मिट्टी को बहने से रोकती है और पुनः घास उग आती है। यह तकनीक पूरी तरह ईको फ्रेंडली होती है।
देश और दुनिया सहित स्थानीय खबरों के लिए जुड़े रहे दस्तक पहाड़ से।
खबर में दी गई जानकारी और सूचना से क्या आप संतुष्ट हैं? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
चोपता में बुग्यालों के संरक्षण के लिए कोयर नेट तकनीक बनी संजीवनी, रंग लाई वन विभाग की पहल
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
भारत में सशक्त मीडिया सेंटर व निष्पक्ष पत्रकारिता को समाज में स्थापित करना हमारे वेब मीडिया न्यूज़ चैनल का विशेष लक्ष्य है। खबरों के क्षेत्र में नई क्रांति लाने के साथ-साथ असहायों व जरूरतमंदों का भी सभी स्तरों पर मदद करना, उनको सामाजिक सुरक्षा देना भी हमारे उद्देश्यों की प्रमुख प्राथमिकताओं में मुख्य रूप से शामिल है। ताकि सर्व जन हिताय और सर्व जन सुखाय की संकल्पना को साकार किया जा सके।
भगवती शैव / ऊखीमठ
दस्तक पहाड न्यूज। हिमालय की गोद में स्थित विश्वप्रसिद्ध पर्यटक स्थल चोपता में बुग्यालों के संरक्षण के लिए कोयर नेट तकनीक संजीवनी साबित हो रही है।
नारियल के रेशों से तैयार कोयर नेट लगाने से कई स्थानों पर बुग्याल दोबारा उग आई है। वन विभाग द्वारा बुग्यालों को बचाने के दिशा में किया गया यह कार्य सफल
होता दिखाई दे रहा है। दरअसल भूस्खलन,कमजोर भौगोलिक गठन,अधिक बरसात,भूमि संरचना,मानव हस्तक्षेप एवं बादलों के फटने जैसी प्राकृतिक घटनाएं बुग्याली क्षेत्र
में मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण होती हैं और बुग्यालों को खासा नुकसान पहुँचता है। इसलिए इसके संरक्षण के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं। पिछले वर्ष
दिसम्बर में विश्वप्रसिद्ध चोपता,देवरियाताल,रौणी बुग्याल एवं भुजगलि में वन विभाग के द्वारा लगभग 22 सौ वर्ग मीटर के क्षेत्र में नारियल के रेशों से निर्मित
चटाइयां (कोयर नेट) लगायी गयी थी। यह नेट उन स्थानों पर लगायी गयी थी जहां पर लगातार भूकटाव हो रहा था और बुग्याल पूरी तरह समाप्त हो गयी थी। लगभग आठ माह बीतने
के बाद इन स्थानों पर बुग्याल दोबारा उगने लग गयी है। कोयर नेट विधि से बुग्यालों को पूरी तरह उगने में तीन से पांच साल का वक्त लगता है वहीं बुग्यालों के
संरक्षण की दिशा में यह प्रयास कारगर साबित हो रहा है। इस तकनीक का भारत में पहली बार उपयोग 2020 में दयारा बुग्याल में किया गया था।
केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के वन क्षेत्राधिकारी पंकज ध्यानी ने बताया कि चोपता व अन्य स्थानों पर बुग्यालों को बचाने के लिए कोयर नेट (जाल) लगायी गयी है।
जिसके सकारात्मक परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। इसी प्रकार मध्यमहेश्वर एवं तुंगनाथ व चंद्रशिला के बीच भी बुग्यालों के सरंक्षण का कार्य जल्द शुरू किया
जाएगा। कहा कि बुग्यालों के संरक्षण के लिए सभी लोगों की सहभागिता अति आवश्यक है।
क्या है कोयर नेट तकनीक
[caption id="attachment_33182" align="aligncenter" width="1280"] कोयर नेट[/caption]
मखमली घास के ढलानों पर मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें नारियल रेशों से तैयार जाल( चटाई) से प्रभावित स्थान को पूरी
तरह ढक दिया जाता है यह खाद का काम तो करती ही है साथ में मिट्टी को बहने से रोकती है और पुनः घास उग आती है। यह तकनीक पूरी तरह ईको फ्रेंडली होती है।