इतिहास की परतें कुरेदने वाले डॉ यशवंत सिंह कठोच को पद्मश्री, केदारघाटी से गहरा नाता, कण्डारा ताम्र अभिलेख पढ़ने वाले पहले व्यक्ति
1 min read26/01/2024 6:37 pm
दीपक बेंजवाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज। । पौड़ी के पास अपने छोटे से घर पर सैकड़ों किताबो के बीच एक अध्ययन केंद्र में सालो से लिखने पढ़ने वाले डा यशवंत सिंह कठोच को जब पद्मश्री सम्मान दिए जाने के जानकारी उनके मित्रजनों ,परिजनों से मिली तो वो एक पल को हैरान हुए और बेहद खुश नजर आए और उन्होंने कहा कि ये कैसे हो गया , चलो जो हुआ अच्छा हुआ सरकार ने मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति को ये सम्मान दिया।
जानकारी के मुताबिक डा यशवंत सिंह ने इस सम्मान को पाने के लिए अपनी तरफ से कोई आवेदन या पैरवी भी नही की,उनके मुताबिक किसी इष्ट मित्र ने आवेदन कर दिया होगा तो उसकी उन्हे जानकारी भी नही है।
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उनकी इस उपलब्धि से संपूर्ण उत्तराखंड में खुशी की लहर है। सीएम पुष्कर धामी ने भी उन्हें बधाई दी है। 88 वर्ष की उम्र में उत्तराखंड के प्रदेश के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ यशवंत सिंह कठोच ने 33 वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवाएं दी, और प्रधानाचार्य के पद से रिटायर हुए। डॉ कठोच इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में लंबे समय से योगदान दे रहे हैं। डॉ कठोच का जन्म 27 दिसंबर 1935 को मासों, विकास खंड एकेश्वर, चौंदकोट पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उन्होंने 1974 में आगरा विवि से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा पुरातत्व विषय में विवि में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वर्ष 1978 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के गढ़वाल हिमालय के पुरातत्व पर शोध ग्रंथ प्रस्तुत किया और विवि ने उन्हें डीफिल की उपाधि से नवाजा। एक शिक्षक के रूप में उन्होंने 33 साल सेवाएं दीं। वर्ष 1995 में वह प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए। डॉ कठोच भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में निरंतर शोध कर रहे हैं। वह वर्ष 1973 में स्थापित उत्तराखंड शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य हैं। उनकी मध्य हिमालय का पुरातत्व, उत्तराखंड की सैन्य परंपरा, संस्कृति के पद.चिन्ह, मध्य हिमालय की कला, एक वास्तु शास्त्रीय अध्ययन, सिंह.भारती सहित 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
उनका स्नातकोत्तर राजनीति विज्ञान और इतिहास में आगरा विश्वविद्यालय से हुआ। वे डी० फिल० भी हैं। वे एक शिक्षक से होते हुए प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत हुए। मध्य हिमालय के 3 खंड, मध्य हिमालय का पुरातत्व, संस्कृति के पद चिन्ह, उत्तराखंड का नवीन इतिहास उनकी प्रमुख कृतियां हैं। भारत वर्ष का ऐतिहासिक स्थल कोश उनका अखिल भारतीय ग्रंथ है। डॉक्टर कठोच ने जौनसार, महासू मंदिर, कण्वाश्रम, अल्मोड़ा, बागेश्वर, कटारमल्ल, बैजनाथ आदि जगहों का भ्रमण कर उनका पुरातात्विक अध्ययन किया। अपने शैक्षणिक प्रयासों के अलावा, डॉ कठोच ने उत्तराखंड में महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
केदार घाटी में डाॅ यशवंत कठोच ने ऐतिहासिक महत्व के कण्डारा गढ़ी ताम्र अभिलेख को सबसे पहले पढ़ा था। दस्तक पहाड़ से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि इस ताम्र अभिलेख के अनुवाद का कार्य 15 दिनों में पूर्ण हुआ था। तब संसाधनों का अभाव था लेकिन इसका उत्तराखंड के इतिहास में बड़ा महत्व था जिससे मेरी जिज्ञासा इसे पूरा पढ़ने की हुई। वो बताते है कि ऐतिहासिक महत्वों के इन अभिलेखों का संरक्षण होना आवश्यक है, इनका महत्व और अर्थ क्या है यह नई पीढ़ी को भी पता होना चाहिए। इतिहास में निष्पक्षता आवश्यक है।
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