पहाड़ के पुराने कुओं को मिलेगा अब संरक्षण, सत्यापन के साथ अब उत्तराखंड सरकार करेगी पुनर्जीवित
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Himvan
11/04/202510:20 am
दस्तक पहाड़ न्यूज, देहरादून।।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कुएं प्राचीन काल से गांवों से लेकर शहरों तक मीठे और साफ पानी के स्रोत रहे हैं। कुंए धार्मिंक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण होते हैं। कई जगह कुंए ऐतिहासिक घटनाओं के भी गवाह हैं। लेकिन समय के साथ जलापूर्ति की व्यवस्था बदलने से कुंओं का उपयोग घटता चला गया। वर्तमान में कई जगह कुएं अतिक्रमण या उपेक्षा के शिकार हो चुके हैं। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दशकों पुराने कुओं का जीर्णोंधार करने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए कुओं का व्यापक सत्यापन अभियान चलाया जाएगा। साथ ही रखरखाव के जरिए इन्हें फिर से पुनर्जीवित किया जाएगा।
इसे देखते हुए अब प्रदेश सरकार एक बार फिर कुओं का रखरखाव करने जा रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने बरसात से पहले कुओं की व्यापक सफाई करते हुए, इन्हें पुनर्जीवित करने के निर्देश दिए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिए कुओं की साफ सफाई करते हुए पुनर्जीवित किया जाएगा।
प्रदेश सरकार गेम चेंजर योजना के तहत स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी (सारा) के जरिए जल स्रोतों के संरक्षण का प्रयास कर रही है। जल संरक्षण अभियान 2024 के तहत कुल 6350 क्रिटिकल – सूखे जल स्रोतों को चिन्हित करते हुए पेयजल और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण 929 स्रोतों का उपचार किया जा चुका है। साथ ही मैदानी क्षेत्रों में भूजल रिचार्ज के लिए 297 रिचार्ज शॉफ्ट निर्मित किए जा चुके हैं। गत वर्ष विभिन्न जल संचय और संग्रहण संरचनाओं के निर्माण से 3.21 मिलियन घन मीटर वर्षा जल रिचार्ज किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नौ नवंबर को उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस पर दिए अपने भाषण में राज्यवासियों से अपने नौलों, धारों को संरक्षित करते हुए पानी के स्वच्छता अभियानों को गति देने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि उत्तराखण्ड में अपने नौलों धारों को पूजने की परंपरा रही है। प्रदेश सरकार इसी क्रम में कुओं को भी संरक्षित करने का अभियान शुरू करने जा रही है।
इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कुएं हमारी सभ्यता के अहम अंग रहे हैं। शहरों से लेकर गांवों तक कई प्राचीन कुएं हैं। हमारा प्रयास है कि इन्हें फिर प्रयोग में लाया जाए, इससे जल संरक्षण के प्रयासों को भी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही स्वच्छ जल के प्राकृतिक स्रोत भी संरक्षित हो सकेंगे।
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पहाड़ के पुराने कुओं को मिलेगा अब संरक्षण, सत्यापन के साथ अब उत्तराखंड सरकार करेगी पुनर्जीवित
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दस्तक पहाड़ न्यूज, देहरादून।।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कुएं प्राचीन काल से गांवों से लेकर शहरों तक मीठे और साफ पानी के स्रोत रहे हैं। कुंए धार्मिंक और सांस्कृतिक रूप से भी
महत्वपूर्ण होते हैं। कई जगह कुंए ऐतिहासिक घटनाओं के भी गवाह हैं। लेकिन समय के साथ जलापूर्ति की व्यवस्था बदलने से कुंओं का उपयोग घटता चला गया। वर्तमान
में कई जगह कुएं अतिक्रमण या उपेक्षा के शिकार हो चुके हैं। अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दशकों पुराने कुओं का जीर्णोंधार करने के निर्देश दिए हैं।
इसके लिए कुओं का व्यापक सत्यापन अभियान चलाया जाएगा। साथ ही रखरखाव के जरिए इन्हें फिर से पुनर्जीवित किया जाएगा।
[caption id="attachment_43820" align="alignnone" width="867"] Himvan[/caption]
इसे देखते हुए अब प्रदेश सरकार एक बार फिर कुओं का रखरखाव करने जा रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने बरसात से पहले कुओं की व्यापक सफाई करते हुए, इन्हें
पुनर्जीवित करने के निर्देश दिए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिए कुओं की साफ सफाई करते हुए पुनर्जीवित किया जाएगा।
प्रदेश सरकार गेम चेंजर योजना के तहत स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी (सारा) के जरिए जल स्रोतों के संरक्षण का प्रयास कर रही है। जल संरक्षण अभियान 2024 के
तहत कुल 6350 क्रिटिकल – सूखे जल स्रोतों को चिन्हित करते हुए पेयजल और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण 929 स्रोतों का उपचार किया जा चुका है। साथ ही मैदानी क्षेत्रों
में भूजल रिचार्ज के लिए 297 रिचार्ज शॉफ्ट निर्मित किए जा चुके हैं। गत वर्ष विभिन्न जल संचय और संग्रहण संरचनाओं के निर्माण से 3.21 मिलियन घन मीटर वर्षा जल
रिचार्ज किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नौ नवंबर को उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस पर दिए अपने भाषण में राज्यवासियों से अपने नौलों, धारों को संरक्षित करते हुए
पानी के स्वच्छता अभियानों को गति देने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि उत्तराखण्ड में अपने नौलों धारों को पूजने की परंपरा रही है।
प्रदेश सरकार इसी क्रम में कुओं को भी संरक्षित करने का अभियान शुरू करने जा रही है।
इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कुएं हमारी सभ्यता के अहम अंग रहे हैं। शहरों से लेकर गांवों तक कई प्राचीन कुएं हैं। हमारा प्रयास है कि इन्हें फिर प्रयोग में
लाया जाए, इससे जल संरक्षण के प्रयासों को भी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही स्वच्छ जल के प्राकृतिक स्रोत भी संरक्षित हो सकेंगे।