विजय भट्ट / वरिष्ठ पत्रकार  तीन किलोमीटर की दूरी... और 28 साल का इंतज़ार "सड़क ने जितना इंतज़ार करवाया, उतना तो उम्र नहीं रुकती!" यह कोई कवि की पंक्ति नहीं, बल्कि रुद्रप्रयाग ज़िले के कंणसिल-जाबरी गांव के लोगों की ज़िंदगी का कड़वा सच है।

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28 साल... यानी एक पूरी पीढ़ी का सफर। बच्चे, जो उस वक़्त खेलते थे, आज अपने बच्चों को पीठ पर उठाकर इन्हीं कच्ची पगडंडियों से अस्पताल ले जाते हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में मायावती सरकार ने जिस तीन किलोमीटर की सड़क को स्वीकृति दी थी, वो आज भी अधूरी पड़ी है — एक सपना, जो कभी सच नहीं हुआ। उत्तराखंड बना, नई सरकारें आईं, नई घोषणाएं हुईं। पर कंणसिल–जाबरी मार्ग पर हालात जस के तस हैं। न कोई काम शुरू हुआ, न उम्मीद का सिरा मिला। सड़क अब भी अधूरी है — जैसे किसी सिस्टम ने जानबूझकर इस गांव को विकास की सूची से बाहर रख छोड़ा हो। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस जर्जर मार्ग से 108 एंबुलेंस तक गांव नहीं पहुंच पाती। ज़रा सोचिए — किसी गर्भवती महिला को, किसी बीमार बुज़ुर्ग को, किसी घायल बच्चे को अस्पताल तक पहुंचाने का एक ही साधन है — मानवीय पीड़ा और गांववालों की हिम्मत। जब सड़क नहीं होती, तो समय भी नहीं बचता — और कई बार, ज़िंदगियाँ भी नहीं बचतीं। तीन किलोमीटर की यह दूरी अब सिर्फ भौगोलिक नहीं है, यह विश्वास और शासन के बीच खड़ी दीवार बन चुकी है। जब हर चुनाव में घोषणाएं होती हैं, और फिर वही खामोशी लौट आती है — तो यह सड़क सिर्फ धूल से नहीं, बल्कि टूटी उम्मीदों से भी भर जाती है। हाल ही में हुए केदारनाथ उपचुनाव में भी इस मार्ग को लेकर घोषणाएं की गई थीं, पर ज़मीनी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। हर सरकार के पास बहाने हैं — पर गांव के पास अब न सब्र बचा है, न विकल्प। गांववालों का सवाल अब सीधा है:"तीन दशक से हम क्या मांगे? एक सड़क... या फिर न्याय?" अगर विकास का मतलब सिर्फ घोषणाएं हैं, तो जाबरी कान्दी के लोग इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। अगर वादों का मूल्य सिर्फ वोटों तक सीमित है, तो यह सड़क उसकी सबसे लंबी गवाही है।यूपी के उत्तराखंड अलग राज्य बना और जाबरी से आगे कान्दी बाड़ब किंझाणी तक सड़क के विस्तार और चमोली और रुद्रप्रयाग के गांवों की दूरी कम करने को सड़क स्वीकृत हुए, लेकिन यह सड़क भी आज तक पूरी नहीं हुई। राज्य गठन के समय केदारनाथ से पहली महिला विधायक आशा नौटियाल बनी और फिर वर्तमान में भी वह विधायक हैं । लेकिन सड़क आज भी लोगों का सपना बनी हुई हैं। अब वक्त है — इस सन्नाटे को आवाज़ देने का। अब वक्त है — कि कंणसिल–जाबरी सड़क सिर्फ नक्शे पर नहीं, धरातल पर भी दिखाई दे।