ठिठुरन बढ़ने से निचली घाटी में आ रही हैं पक्षीयाँ, तुंगनाथ घाटी में दिखा बर्फीला तीतर
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29/12/202311:23 am
विनोद नौटियाल / ऊखीमठ।।
दस्तक पहाड न्यूज। । ठिठुरन बढ़ने के साथ ही उच्च हिमालय क्षेत्रों से पक्षियों की प्रजातियां निचले इलाकों में लौटने लगी हैं। तुंगनाथ घाटी के चोपता,दुगलविट्टा, मक्कूमठ,ताला-मस्तूरा, से काकड़ागाड तक पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है। साठ से अस्सी प्रजाति के पक्षी इन क्षेत्रों में पहुंच चुके हैं। जिसमें हिमालय ब्लूटेल, गोल्डन बुस रोबिन,फ्लाइकेचर,सनबर्ड,रेड हेडेड बुलफिंच, हिमालयन ग्रीन फिंच सहित कई प्रजातियां हैं।
14 हजार से 15 हजार फीट पर प्रवास करने वाला बर्फीला तीतर भी आजकल 12144 फीट पर स्थित तुंगनाथ क्षेत्र में देखा जा रहा है जो शीतकाल में भी इससे नीचे नहीं आता है।
मक्कूमठ गांव निवासी पक्षी विशेषज्ञ यशपाल सिंह नेगी बताते हैं कि रूद्रप्रयाग जिले में पक्षियों की मिलने वाली 300 से अधिक प्रजातियों में लगभग 150 प्रजातियां शीतकाल में वर्फवारी होने से भोजन की तलाश में निचले इलाकों में आ जाती हैं। जनवरी आखिरी कई प्रजातियां ॠषिकेश व देहरादून तक पहुंच जाते हैं। मार्च के बाद गर्मी शुरू होते ही ये पक्षी पुनः प्रजनन के लिए अपने हिमालय क्षेत्र की ओर लौट आते हैं।
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ठिठुरन बढ़ने से निचली घाटी में आ रही हैं पक्षीयाँ, तुंगनाथ घाटी में दिखा बर्फीला तीतर
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विनोद नौटियाल / ऊखीमठ।।
दस्तक पहाड न्यूज। । ठिठुरन बढ़ने के साथ ही उच्च हिमालय क्षेत्रों से पक्षियों की प्रजातियां निचले इलाकों में लौटने लगी हैं। तुंगनाथ घाटी के
चोपता,दुगलविट्टा, मक्कूमठ,ताला-मस्तूरा, से काकड़ागाड तक पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है। साठ से अस्सी प्रजाति के पक्षी इन क्षेत्रों में पहुंच
चुके हैं। जिसमें हिमालय ब्लूटेल, गोल्डन बुस रोबिन,फ्लाइकेचर,सनबर्ड,रेड हेडेड बुलफिंच, हिमालयन ग्रीन फिंच सहित कई प्रजातियां हैं।
[caption id="attachment_35411" align="aligncenter" width="1279"] बर्फीला तीतर[/caption]
14 हजार से 15 हजार फीट पर प्रवास करने वाला बर्फीला तीतर भी आजकल 12144 फीट पर स्थित तुंगनाथ क्षेत्र में देखा जा रहा है जो शीतकाल में भी इससे नीचे नहीं आता है।
[caption id="attachment_35410" align="aligncenter" width="1600"] गोल्डन बुश रॉबिन[/caption]
मक्कूमठ गांव निवासी पक्षी विशेषज्ञ यशपाल सिंह नेगी बताते हैं कि रूद्रप्रयाग जिले में पक्षियों की मिलने वाली 300 से अधिक प्रजातियों में लगभग 150 प्रजातियां
शीतकाल में वर्फवारी होने से भोजन की तलाश में निचले इलाकों में आ जाती हैं। जनवरी आखिरी कई प्रजातियां ॠषिकेश व देहरादून तक पहुंच जाते हैं। मार्च के बाद
गर्मी शुरू होते ही ये पक्षी पुनः प्रजनन के लिए अपने हिमालय क्षेत्र की ओर लौट आते हैं।