हरीश गुसांई / अगस्त्यमुनि।
दस्तक पहाड न्यूज। केदारनाथ उपचुनाव अब अन्तिम चरण में है। चुनावी शोर बन्द हो चुका है और सभी प्रत्याशी अब कल होने वाले मतदान की तैयारी कर रहे हैं। पिछले 20 दिनों से चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान सभी प्रत्याशियों ने खूब मेहनत की और सभी जीत के दावे भी कर रहे हैं। परन्तु अब अन्तिम तौर पर मुकाबला भाजपा एवं कांग्रेस में ही सिमटता दिख रहा है। हालांकि निर्दलीय त्रिभुवन चौहान एवं उक्रांद के डॉ0 आशुतोष भण्डारी ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। परन्तु इसे अंजाम तक नहीं पहुंचा पाये। वे भाजपा एवं कांग्रेस के बड़े नेताओं द्वारा धुंवाधार प्रचार एवं संगठन की मजबूती से लड़ नहीं पाये। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ने ही एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपों की झड़ी लगाई। एक दूसरे को झूठ का पुलिन्दा कहकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास किया। कांग्रेस ने इस चुनाव को मनोज रावत बनाम आशा नौटियाल न बनाकर इसे केदार की प्रतिष्ठा से जोड़ा। केदारनाथ धाम को दिल्ली ले जाने का मुद्दा जोर शोर से उठाया, साथ ही केदार यात्रा को डायवर्ट करने तथा केदारनाथ के युवाओं का रोजगार छीनने के मुद्दे पर भी भाजपा को घेरा। भाजपा जहां शुरूवाती चरण में मुख्यमंत्री द्वारा केदारनाथ विधान सभा में 700 करोड़ रू0 से अधिक की विकास योजनाओं की घोषणा से गदगद थी तथा इसे ही चुनावी मुद्दा बना रही थी। परन्तु कांग्रेस के आरोपों से डरकर भाजपा फिर से अपने मुख्य एजेण्डे हिन्दुत्व एवं सनातन खतरे में है पर आ गई। चुनाव में मुख्य बात यह भी देखने को मिली कि आज तक कांग्रेस हर चुनाव में भाजपा पर मन्दिर के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाती रही परन्तु इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस पर मन्दिर के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया। दोनों ही दलों ने अपने बड़े नेताओं के साथ ही विधायकों एवं पार्टी पदाधिकारियों की पूरी फौज चुनाव प्रचार में लगाईं भाजपा ने मुख्यमंत्री के साथ ही सभी मत्रियों एवं विधायकों को गांव गांव चुनाव प्रचार में झौंका तो कांग्रेस ने भी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल, नेता प्रतिपक्ष याशपाल आर्य, डॉ हरकसिंह रावत, उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी सहित कई विधायकों के साथ चुनाव प्रचार किया। पहली बार पूरी कांग्रेस एकजुट नजर आई। जिससे कंाग्रेस को संजीवनी मिली और उसने चुनाव में दमदार उपस्थिति दर्ज कराकर चुनाव को रोचक मोड़ पर ले आई।
अब जब प्रचार को शोर थम गया है और जनता की चुप्पी से दोनों दल सहमें हुए हैं। हालांकि दोनों ही दल बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं परन्तु महिलायें एवं अनुसूचित जाति की वोट ही निर्णायक नजर आ रही हैं। केदारनाथ विधान सभा में महिला एवं पुरूष वोटरों में बहुत अन्तर नहीं है। परन्तु अधिकांश पुरूष रोजगार या अन्य कारणों से बाहर हैं। ऐसे में गांवों में महिलाओं की संख्या ही अधिक है। जिनपर वर्तमान में भाजपा की पकड़ मजबूत दिख रही है। पूर्व से ही भाजपा ने महिलाओं के लिए कई योजनायें बनाई एवं उसे क्रियान्वित भी किया है। जिसका लाभ उन्हें मिलता रहता है। वहीं मोदी राशन एवं मोदी पेंशन भी ग्रामीण महिलाओं को भाजपा के करीब लाता है। भाजपा में महिला कार्यकताओं की बड़ी फौज भी है जो लगातार ग्रामीण महिलाओं के सम्पर्क में हैं। वहीं कांग्रेस में महिला कार्यकर्ताओं की कमी के कारण महिला मतदाताओं में उनकी सीधी पकड़ न होने से यह उनका कमजोर पक्ष दिखता है।
जहां तक अनुसूचित जाति का मतदाता है उसे अब तक कांग्रेस के पारम्परिक वोटर माना जाता रहा है। परन्तु पिछले काफी वर्षों से वह कभी बसपा एवं कभी निर्दलियों के हिस्से में जाता दिखा है। जिसमें अधिकांश हिस्सा पूर्व में निर्दलीय रहते हुए दो चुनाव लड़ चुके कुलदीप रावत के पास रहा। अब जब कुलदीप रावत भाजपा में शामिल हैं तथा भाजपा को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं ऐसे में सवाल है कि क्या अनुसूचित जाति का वोट भी भाजपा में शिफ्ट होगा ? इसी पर भाजपा का संशय है। केदारनाथ विधान सभा में 17 हजार से अधिक मतदाता अनुसूचित जाति के हैं। ऐसे में हर दल इन वोटरों को लुभाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। भाजपा ने अनुसूचित जाति के वोटरों को लुभाने के लिए चुनाव के बीच में अनुसूचित जाति स्वाभिमान सम्मेलन कराने के साथ ही अपने सभी अनुसूचित जाति के विधायकों, मन्त्रियों एवं नेताओं को क्षेत्र में सक्रिय किया है।
चुनावी शोर तो बन्द हो चुका है परन्तु घर घर, मोहल्ले मोहल्ले में मतदाताओं को रिझाने का अन्तिम अवसर आज रात ही है। जिसे घर गांव में सिरतू रात भी कहा जाता है। और इसी अन्तिम रात्रि को वोटरों को अपने पक्ष में भुनाने के लिए हर दांव खेला जाता है। कस्में दिलाने के साथ ही पैसा भी भरपूर चलता है। यही नहीं जाति वादी राजनीति भी अपने चरम पर रहती है। इसलिए इस अन्तिम रात्रि को हर दल सचेत रहता है। अब यह तो 23 तारीख ही पता चलेगा कि किस की राजनीति किस पर भारी पड़ी। परन्तु 20 तारीख को होने वाला मतदान इसकी रूपरेखा तो तय कर ही देगा।